मंगलसूत्र : महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा देने वाला वैवाहिक बंधन

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वीरेंद्र बहादुर सिंह 

‘मंगल यानी शुभ और सूत्र यानी बंधन। मंगलसूत्र यानी शुभबंधन।’

मंगलसूत्र की यह व्याख्या संस्कृत साहित्य से आई है। ईसापूर्व चौथी सदी में संपादित संस्कृत ग्रंथ ब्रह्मांड पुराण में ललितासहस्त्र में देवियों के हजार नाम दिए हैं। इसमें जो मंगलम् सूत्रम का उल्लेख है, पति वैवाहिक विधि के रूप में पत्नी के गले में एक बंधन बांधता है, यह रस्म यानी मंगलसूत्र। इस विधि को मांगल्य धारणम् भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह सूत्र धारण करने से शुभ होता है और बुराई दूर रहती है। संस्कृत में लिखे अनुसार, मांगल्य सूत्र से ले कर मंगल धर्मसूत्र, मांगल्य सूत्रम् जैसे तमाम नामों से मंगलसूत्र का उल्लेख होता रहा है। आदिगुरु शंकराचार्य के सौंदर्य लहरी में भी मंगलसूत्र के बारे में लिखा गया है।
उस समय मंगलसूत्र का अर्थ शायद आज जैसा नहीं था। मंगलसूत्र यानी कि एक तरह की माला। वह सोने की हो, ऐसा उल्लेख नहीं है। वह रेशम के धागे की हो या फिर अन्य किसी चीज की टिकाऊ माला हो। इतिहासकारों का एक मत यह भी है कि विवाह के समय मंगलसूत्र पहनने के बाद अन्य तमाम चीजों की तरह उसे भी संभाल कर रख दिया जाता था। यह भी कहा जाता है कि भारत में छठी सदी से राजपरिवारों और जमीदारों में विवाह होते समय कन्या को मंगलसूत्र पहनाने की परंपरा शुरू हुई थी।
तमाम लोग यह भी मानते हैं कि मंगलसूत्र एक प्रकार के धार्मिक बंधन की तरह पहने जाने वाली चीज है, इसलिए महिलाएं विवाह के बाद मंगलसूत्र पहनती हैं। यह बंधन पुराना हो जाए तो इसे बदला भी जा सकता है। जनेऊ की तरह। सदियों तक मंगलसूत्र का इधर-उधर उल्लेख मिलता है और इसमें खास कुछ स्पष्टता नहीं है। शुरुआत में एक पीले धागे को हल्दी में रंग कर लाल-काली मोतियों का हार बनाया जाता था। विवाह के समय पति के परिवार की महिलाएं, खास कर मां या बहनें कन्या के गले में उस हार को पहना कर घर-परिवार में उसका स्वागत करती थीं। सदियों पहले यह मान्यता थी कि यह सूत्र पहन कर कन्या घर आएगी तो सब शुभ होगा और अमंगल का नाश होगा।
सोना सहित कीमती धातु से मंगलसूत्र कब से बनने लगा, इसका कोई व्यवस्थित इतिहास नहीं है। इसलिए किस सदी से सोने-चांदी का मंगलसूत्र विवाह में कन्या को पहनाना शुरू हुआ, इसे स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता। परंतु सोने-चांदी का मंगलसूत्र भारत में बहुत बाद में शुरू हुआ है। सदियों पहले मंगलसूत्र यानी हल्दी में रंग कर पवित्र किए गए धागे में गूंथ कर तैयार की गई माला।
सिंधु घाटी संस्कृति की खुदाई के दौरान शोधकर्ताओं को मंगलसूत्र की निशानी मिली है। वह मंगलसूत्र आज की तरह भले नहीं था, पर शोधकर्ताओं का मानना है कि प्राचीनकाल में भी भारत में रहने वाली इस संस्कृति की महिलाएं विवाह के बाद गले में मंगलसूत्र धारण करती रही होंगी। पर सही अर्थ में भारत में 15वीं या 16वीं सदी में मंगलसूत्र पति की लंबी आयु के लिए पहनना शुरू हुआ। पर यह गहने के स्वरूप में नहीं था। शादी के बाद महिलाएं साधारण मोतियों की माला बना कर पहनती थीं।
समय के साथ मंगलसूत्र विवाहित महिलाओं का सिंबल बन गया। पति का परिवार कन्या को विवाह के समय मंगलसूत्र देने लगा। धनी परिवार कीमती माला का मंगलसूत्र बनवाता है। कन्या की ससुराल कितनी धनी है, यह मायके वालों को मंगलसूत्र से पता चलता है। सहेलियां मंगलसूत्र से जान  लेती हैं कि दुल्हन को बहुत पैसे वाला पति मिला है।
भारत में वर्ण व्यवस्था थी, तब अमुक वर्ण में ही कन्या विवाह के समय मंगलसूत्र पहनती थी। तमाम जातियों में ऐसा कोई रिवाज नहीं था। शायद इसके पीछे का कारण आर्थिक भी हो सकता है। मंगलसूत्र बनाने के लिए मोती चाहिए। भारत में ऐसी समृद्धि नहीं थी कि यह सभी जाति वालों को रास आए। परिणामस्वरूप विवाह में मंगलसूत्र काफी समय तक जरूरी गहना नहीं माना जाता था।
इस तरह मंगलसूत्र एक धागे से कीमती धातु का गहना बना। इसे लेकर अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग डिजाइनें और मान्यताएं हैं। दक्षिण भारत में मंगलसूत्र के बीच लक्ष्मीजी के चित्र वाला मंगलसूत्र बनता है। लक्ष्मीजी समृद्धि का प्रतीक होने से कन्या जिस घर में जाती है, उस घर में समृद्धि ले कर जाती है, यह मान्यता होने से लक्ष्मीजी को केंद्र में रखा जाता है।
तमिल में मंगलसूत्र के बीच कुंभ की डिजाइन देखने को मिलती है। कुंभ यानी मिट्टी का घड़ा। इसे धन्य-धान्य का प्रतीक माना गया है, इसलिए कन्या को अन्नपूर्णा मान कर ससुराल वाले स्वीकार करते हैं। आंध्रप्रदेश में कन्या को 2 मंगलसूत्र मिलते हैं। एक वरपक्ष देता है तो दूसरा मायके की ओर से मिलता है। परंपरागत मंगलसूत्र सूत्र में दोनों ओर काले मोती और बीच में सोने का पैंडल होता है। अब इसमें अपार डिजाइनें उपलब्ध हैं। तमाम परिवारों में सोने से लदा भारी भरकम मंगलसूत्र दिया जाता है, जो विवाह के दिन एक तरह से वरपक्ष की धन-संपदा दिखाने के लिए होता है। एक रूटीन में तिथि-त्योहार पर पहनने के लिए हल्का यानी पतला मंगलसूत्र मिलता है। पूरा सेट एक साथ ही तैयार होता है।
इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि हिंदू विवाह में मंगलसूत्र का कांसेप्ट नहीं था। इसमें सोने-चांदी का मंगलसूत्र तो बहुत बाद में आया। भारत में 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में बंगाल और दक्षिण भारत के प्रदेशों में मंगलसूत्र हिंदू विवाहों का अभिन्न अंग माना गया। इस बंधन के बगैर विवाह अधूरा माना जाता था। यहां तक कि कुछ जातियों में तो विवाह होने के बाद महिलाओं को हमेशा मंगलसूत्र पहनना पड़ता था। मंगलसूत्र न पहनने पर इसे अशुभ माना जाता था। जिस तरह नाक में सोने-चांदी की कील पहनना सौभाग्य की निशानी है, उसी तरह मंगलसूत्र पहनना भी सौभाग्य का पर्याय बन गया।
कहा जाता है कि उत्तर भारत में मंगलसूत्र की परंपरा बहुत बाद में शुरू हुई। इन इलाकों में विवाह के बाद महिलाएं कंठी पहनती थीं। मंगलसूत्र के बजाय पैरों में पायल-बिछिया और हाथ में चूड़ियों को सौभाग्य का प्रतीक मानती थीं। भारतीय आभूषणों के इतिहास में इतिहासकारों के अनुसार विवाह के बाद दुल्हन मंगलसूत्र पहने यह आधुनिक परंपरा है। सदियों पहले मंगलसूत्र विवाह विधि में अभिन्न हिस्सा नहीं था। इंडियन ज्वेलरी : द डांस आफ पिकोक में डा.ऊषा बालकृष्णन और मीरा सुशील कुमार कहती हैं कि ये आभूषण महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा के लिए बहुत उपयोगी साबित होते थे। उस समय जब महिलाओं को संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता था, उस समय सोने के गहने ही उनकी संपत्ति होते थे।
अक्सर यह दलील भी दी जाती है कि फिल्मों-टीवी धारावाहिकों की वजह से मंगलसूत्र को लोकप्रियता मिली है और इसमें मार्केटिंग का कांसेप्ट मिला तो विवाह में मंगलसूत्र जरूरी बन गया। इन सभी दलीलों-उदाहरण-थियरी के बीच आज यह हकीकत माननी पड़ेगी कि हिंदू विवाह में मंगलसूत्र केंद्र में है। भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका में भी मंगलसूत्र की परंपरा है।
सदियों से हिंदुस्तान के साथ ताल मिलाते हुए यहां तक पहुंचा यह पवित्र शुभ धागा अब राजनीतिज्ञों के दिमाग में चढ़ गया है। अब देखते हैं यह कितना सुरक्षित है।

विवाह मंगलसूत्र जरूरी नहीं

एक महिला का मामला मद्रास हाईकोर्ट में पहुंचा था। हाईकोर्ट ने 2009 में अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि हिंदू मैरिज एक्ट के अनुसार विवाह में मंगलसूत्र पहनना जरूरी नहीं है। विवाहित हैं यह दिखाने के लिए महिलाओं को मंगलसूत्र पहनना अनिवार्य नहीं है। मंगलसूत्र न पहनने वाली महिला को जबरदस्ती मंगलसूत्र नहीं पहनाया जा सकता। जस्टिस एम एम सुदेश का यह फैसला देश भर में महत्वपूर्ण माना गया था। इस मामले में मंगलसूत्र न पहनने से पति ने पत्नी को उसके अधिकार देने से मना कर दिया था। 1987 में पुजारी की हाजिरी में विवाह हुआ था। पर मंगलसूत्र नहीं पहनाया गया था, इसलिए पति ने यह विवाह स्वीकार नहीं किया था। तब यह मामला कोर्ट में पहुंचा और 21 साल की कानूनी लड़ाई के बाद मद्रास हाईकोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट सेक्शन 7 के अनुसार यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।

स्त्रीधन में क्या आता है

चुनावी सभा के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने स्त्रीधन का उल्लेख किया। कांग्रेस के मेनिफेस्टो में वेल्थ डिस्ट्रीब्यूशन की बात थी। प्रधानमंत्री ने इसे ले कर कहा था कि विपक्ष सत्ता में आएगा तो इसका हिसाब लेगा। इस बयान के बाद चारों ओर मंगलसूत्र और स्त्रीधन की चर्चा चल पड़ी। मंगलसूत्र तो बेशक स्त्रीधन कहा जाएगा। पर इसके अलावा गहने भी स्त्रीधन की श्रेणी में आते हैं। स्त्रीधन कानूनी टर्म है। इसमें ऐसी चीजों का समावेश होता है, जो विवाह के समय किसी भी स्त्री को मिला हो।
कन्यापक्ष या वरपक्ष की ओर से मिले गहने से ले कर जो भी गिफ्ट मिला हो, उसे स्त्रीधन माना जाता है। हिंदू मैरिज एक्ट में इसका समाधान किया गया है। अविवाहित महिलाओं को भी स्त्रीधन का अधिकार मिला है। उसे बचपन से परिवार के सदस्य की ओर से या किसी अन्य से मिला गहना, शगुन में मिली नकद रकम और कपड़े आदि हैं। विधवा हुई महिला को उसके बाद मिली चीजें या गहने स्त्रीधन माना जाता है। इस पर टैक्स नहीं लगता। महिलाओं को स्त्रीधन बेचने या दान में देने का भी अधिकार है। इसके लिए उन्हें ससुराल वालों या मायके वालों से परमीशन की जरूरत नहीं है। अगर कोई महिला अपना स्त्रीधन बेच देती है तो परिवार का कोई सदस्य उस पर कोई एक्शन नहीं ले सकता।
संपर्क
नोएडा (उ.प्र.)

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